कुछ गाँव ऐसे भी हैं जहाँ जाति सूचक द्वार बनाने को लेकर जातीय संघर्ष भी हुआ है.
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हालाँकि वो इस बात को स्वीकार करते हैं कि कई गाँवों में जाति सूचक द्वार बनाने से जातीय तनाव बढ़ा है.
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पिछड़ी और अनुसूचित जातियों को लगता है कि जाति सूचक द्वार कहीं न कहीं सवर्ण जमींदारों के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई का भी सूचक है.
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अजय कुमार का कहना है, “पिछड़ी और अनुसूचित जातियों को लगता है कि जाति सूचक द्वार कहीं न कहीं सवर्ण जमींदारों के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई का भी सूचक है.
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बिहार की राजधानी पटना से मुज़फ्फ़रपुर के बीच 85 किलोमीटर लंबे रास्ते और हाजीपुर-महुआ पथ के किनारे ऐसे कई गाँवों में जाकर जब मैने लोगों से बातचीत की तो पता लगा कि जाति सूचक द्वार भी बिहार की जाति आधारित राजनीति का हिस्सा हैं.